महान दानवीर भामाशाह
भारत ही नहीं पुरे विश्व के इतिहास के पन्नो और लोगो के दिलो में आज भी उनका नाम गूँजता है। इतिहास के अनुसार वह महाराणा प्रताप के परम मित्र थे इन्ही कारण ही भामाशाह ने हमेशा उनकी मातृभूमि की सेवा की थी। भामाशाह एक दानवीर होने के कारण इतिहास में भी अमर हो गये है । वर्तमान समय में चल रहे bhamashah card सरकार ने इस महान दानवीर की याद हेतु नामकरण किया गया है।
भामाशाह दुनिया मे ऐसे व्यक्ति हे जो आज भी लोगो के दिलो में बसे हुए है , भामाशाह ने अपना सम्पूर्ण जीवन अपनी मातृभूमि की सेवा करने में गुजार दिया था। वह इतने बड़े दानवीर थे की उनको महाभारत के सूर्य पुत्र कर्ण जैसे कहा जाता है।
भामाशाह का जन्म ई.स 29 अप्रैल 1547 में राजस्थान के मेवाड़ राज्य में हुवा था। भामाशाह के पिता को राणा सागा ने रणथम्भौर के क़िले का क़िलेदार नियुक्त किया था| कालान्तर में राणा उदय सिंह के प्रधानमन्त्री भी रहे। भामाशाह एक ऐसे दानवीर थे। जैसे कर्ण के पास जो भी ब्राहमण कुछ भी भिक्षा मांगते थे, कर्ण उसे देते थे। ऐसे ही भामशाह सभी लोगो को दान और सहायता दिया करते थे।
भामाशाह ने अपने देश के लिए उन्होंने अपनी सारी धन दौलत न्योछावर कर दिया था। आज भी पूरी दुनिया में दानवीर वो में से एक थे। जिसे आज भी उन दानवीर Bhamashah को कहकर वंदना किया जाता है।
दानवीर भामाशाह – bhamashah
जब एक समय में महाराणा प्रताप अपना किला हार गए थे। इस समय महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ पहाडियो में धूम रहे थे। तब भामाशाह ने अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए भामाशाह ने अपनी धन दौलत सारी महाराणा प्रताप को दे दी थी।
भामाशाह ने उनकी सारी दौलत महाराणा प्रताप को देने के बाद महाराणा प्रताप ने एक नया सैन्य संगठित किया और उन्हें जगल में ट्रेनिंग दी| इसके बाद सैन्य पूरी तरह तैयार होने के बाद महाराणा प्रताप ने फिर से अपना गँवाया हुआ राज्य पे हमला किया और मुगलो को हरा के वापस लिया। इस तरह भामाशाह जीवन में दानवीर के रूप में लोगो के दिलो में बस गए। भामाशाह इस दानवीरता के कारन इतिहास में अमर हो गए।
भामाशाह जयंती – (Bhamashah Jayanti)
29 अप्रैल एक महान दानवीर भामाशाह की जयंती जब तक महाराणा प्रताप अमर रहे तब तक भामाशाह जिनके दान से सुरक्षित रहा हिन्धू धर्म । ई.स 1599 से इनकी जयंती मनाया जाता है।
भामाशाह और महाराणा का जीवन परिचय –
भामाशाह बचपन से ही महाराणा प्रताप के परम मित्र सहयोगी व् विश्वासपात्र सहलाकर रहे है। ऐसा कहा जाता है कि भामाशाह के पास बड़ी मात्रा में धन संपति थी | जिसे भामाशाह ने महाराणा प्रताप को अपनी सभी धन दौलत दे दी थी। आज भामाशाह का नाम इतिहास में महाराणा प्रताप के साथ वैसे ही दर्ज हो चूका है जैसे श्री राम के साथ हनुमाजी का था। Bhamashah का परिवार कावड़िया ओसवाल जैन था। जिनका प्रथम उल्लेख हल्दीघाटी युद्ध में मिलता है।
हल्दीघाटी युद्ध में भामाशाह के परिवार की सहायता –
हल्दीघाटी युद्ध में भामाशाह और उनके भाई ताराचंद के साथ मेवाड़ी सेना के दाये पार्स वचे थे। इसी पार्स ने मुगलाई सेना पर प्रथम आक्रमण किया था। जिसके पचंद वेग से मुगलाई सेना से मुगलाई फौज के बाक्सिका और हरावल भाग खड़े हुवे थे। हल्दीघाटी युद्ध के बाद भामाशाह ने अनेक बार मेवाड़ के सेना का नेत्तृत्व करते हुवे।
गुजरात मालवा और मालपुरा के खजाने को स्वतत्रता की प्राप्ति के लिए लूट लिया था।इसके बाद भामाशाह को दिल्ली की गद्दी का पवलोबन भी मिला लेकिन भामाशाह ने मेवाड़ की अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने दिल्ली की गद्दी को ठुकरा दिया था।
हल्दीघाटी का युद्ध18 जून ईस्वी 1576 –
हल्दीघाटी युद्ध आज भी राणा प्रताप के प्रति इतिहास के पन्नो में उज्जवल है।हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून ईस्वी 1576 में राणा प्रताप ये हल्दीघाटी युद्ध हार चुके थे।युद्ध हार जाने के बाद राणा प्रताप अपने अस्तित्व को बचाने रखने के लिए राणा प्रताप अपने परिवार के साथ जगलो में पहाड़ियों में धूम रहे थे।राणा प्रताप यद्ध हार जाने के बाद वो सोच रहे थे की अब मेरे पास कोई धन दौलत नहीं है अब बिना धन के सेना का सगठन कैसे किया जाए|
इसी समय पुराना खजाना मत्री Bhamashah ने उनके समक्ष उपस्थित हुए और वो मेवाड़ की प्रति खमा गनी करते है। और भामाशाह बोलते है
” मेवाड़ धणी अपने गोड़े की बाध “ ” मेवाड़ की तरफ मोड़ लीजिये। “ ” मेवाड़ी धरती मुगलो की गुलामी से आंतकित है “
उसका उद्धार किजिए –
इतना बोलकर भामाशाह के साथ आए पार्थाभिल का परिचय महाराणा प्रताप से करवाते है। और बताते है कीस प्रकार से प्रथा ने अपने प्राणो की बाजी लगाकर पूर्वजों ने इस गुप्त खजाने की रक्षा की है।आज वो सवयं सामने लेकर आया हूँ| ये खजान ये, धन मेरा नहीं है।
ये खजाना पूर्वजो की पूजी है अगर मेवाड़ स्वतंत्र रहा तो ये धन में फिर से कमा लूँगा| ये धन आप ग्रहण कीजिये और मेवाड़ की रक्षा कीजिये| इस समय भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 25 लाख रु और 20,000 अशर्फी राणा को दीं थी इसके बाद महाराणा प्रताप क्या कहते है।
भामा जुग जुग सिमरसि,आज कर्यो उपगार। परथा,पुंजा,पिथला,उयो परताप इक चार।
अर्थात “है भामाशाह। आपने आज जो उपकार किया है,उसे युगो युगो तक याद रखा जाएगा यह परथा,पुंजा,पीथल और में प्रताप चार शरीर होकर भी एक है। हमारा संकल्प भी एक है।
भामशाह और राणा प्रताप –
भामशाह और पुर्ता भील की राषट भगति देखर और ईमादारी देखर राणा प्रताप का मन भी द्रविड़ हो उठा वो भावुक हो गए इनके आसु से धारा बेह उठे और राणा प्रताप ने उन दोनों को गले लगा दिया। महाराणा प्रताप कहते है की आज आपके जैसे सपूतो से कारण मेवाड़ जिंदा है। महाराणा और मेवाड़ आपका उपकार को याद रखेगे मुझे आप पर गर्व है।
इस धन से महाराणा प्रताप ईस्वी 1578 से 1590 लगातार युद्ध करते रहे और कही बार गुप्त युद्ध करते रहे और युद्ध में जीत हासिल करते रहे।ई.स 1591 से 1596 तक मेवाड़ और मेवाड़ के महाराणा ओ के लिए चरम ऊचार सिका का समय कहा जाता है। इसके 1 वर्ष के बाद महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गयी थी। जब महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई तब अकबर के आँखों में भी आँसू गए थे।
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